नई दिल्ली: भारत ने लंबे समय के बाद एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि ताइवान चीन का हिस्सा है। चीन के दावे के अनुसार, यह बात तब सामने आई जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने बीजिंग के विदेश मंत्री वांग यी से सीमा वार्ता के दौरान मुलाकात की।
यह मुलाकात 24वें दौर की सीमा वार्ता का हिस्सा थी, जो मंगलवार को नई दिल्ली में हुई। इससे एक दिन पहले ही विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी वांग यी से बातचीत की थी। चीन के विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि जयशंकर ने बैठक के दौरान कहा कि भारत दोनों देशों के बीच स्थिर और सहयोगात्मक संबंध चाहता है और ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है।
भारत का रुख
हालांकि, नई दिल्ली के सूत्रों का कहना है कि भारत ने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि ताइवान के साथ भारत के रिश्ते केवल आर्थिक, सांस्कृतिक और तकनीकी क्षेत्रों तक सीमित हैं।
गौरतलब है कि भारत ने आखिरी बार 2008 तक चीन के साथ साझा बयान में ‘वन चाइना पॉलिसी’ को स्वीकार किया था। लेकिन जब चीन ने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के लोगों को ‘स्टेपल्ड वीज़ा’ देना शुरू किया, तब भारत ने इस नीति का सार्वजनिक ज़िक्र करना बंद कर दिया था।
2018 और उसके बाद
2018 में मोदी सरकार ने परोक्ष रूप से इस नीति को दोहराते हुए एयर इंडिया को अपनी वेबसाइट पर ‘ताइवान’ की जगह ‘चीनी ताइपे’ लिखने को कहा था। उस समय ताइवान ने इस कदम का विरोध करते हुए इसे चीन के दबाव में लिया गया निर्णय बताया था।
ताइवान और भारत के संबंध
हालांकि औपचारिक राजनयिक संबंध न होने के बावजूद भारत और ताइवान के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग चलता रहा है। नई दिल्ली और ताइपे में डे फैक्टो कूटनीतिक मिशन भी मौजूद हैं। हाल ही में 2024 में मुंबई में भी ताइवान ने अपना नया TECC (Taipei Economic and Cultural Centre) खोला, जिस पर चीन ने कड़ा विरोध जताया।
सीमा विवाद की पृष्ठभूमि
भारत-चीन संबंधों में 2020 से पूर्वी लद्दाख में जारी सैन्य तनाव ने काफी असर डाला। दोनों देशों की सेनाएं अब भी आमने-सामने हैं। ऐसे माहौल में भारत द्वारा ताइवान मुद्दे पर रुख दोहराना अहम माना जा रहा है।

